मौलाना वहीदुद्दीन खान - इस्लामी शिक्षा की रौशनी में आतंकवाद क्या है?
7 अगस्त, 2013
(अंग्रेज़ी से अनुवाद: न्यु एज इस्लाम)
आज 'आतंकवाद' एक प्रचलित शब्द बन गया है। दुनिया भर में लोग इसके बारे में लिख रहे हैं और इस पर बातें कर रहे हैं। लेकिन जहां तक मैं जानता हूँ अभी तक इस शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा सामने नहीं आई है। लोग आतंकवाद की निंदा करते हैं, लेकिन अब भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं कर सकते कि ये क्या है।
मैंने इस्लामी शिक्षा की रौशनी में इस सवाल को समझने की कोशिश की है। आतंकवाद की मेरी परिभाषा ये है कि ये गैर सरकारी लोगों के द्वारा सशस्त्र संघर्ष है।
इस्लाम स्वतंत्रता के अधिकार को स्वीकार करता है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति या समूह को राजनीतिक उद्देश्यों या अपने समुदाय के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने का अधिकार है। उस समय तक ये अधिकार बना रहता है जब तक कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई व्यक्ति आक्रमकता में शामिल न हो। इस्लाम में सिर्फ स्थापित सरकार को ही हथियार का इस्तेमाल करने या सैन्य कार्रवाई करने का अधिकार है, और वो भी इसकी असल में ज़रूरत पेश आने पर ही कर सकती है। गैर सरकारी संगठनों को किसी भी बहाने से हथियार उठाने का हक़ नहीं है। मैंने अपनी कई किताबों में इस इस्लामी आदेश के बारे में विस्तार से लिखा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सिद्धांतों के अनुसार स्थापित सरकारों को अपराधियों को सज़ा देने और हमलावरों के खिलाफ अपनी रक्षा का अधिकार हासिल है। ये भी एक इस्लामी सिद्धांत है। इस सिद्धांत की रौशनी में आतंकवाद को कोई भी गैर सरकारी लोगों के द्वारा सशस्त्र कार्रवाई में व्यस्त होने के रूप में परिभाषित कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गैर सरकारी लोग हिंसा का सहारा लेने के लिए किस बहाने का इस्तेमाल करते हैं, किसी भी परिस्थिती में ये कार्रवाई अस्वीकार्य है। अगर किसी गैर सरकारी व्यक्ति को ये लगता है कि किसी खास देश में लोगों के साथ अन्याय किया जा रहा है या मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, तो उसे सिर्फ शांतिपूर्ण तरीके का इस्तेमाल करते हुए इस स्थिति से निपटने की कोशिश करने का अधिकार है। लेकिन किसी भी हालत या बहाने के तहत हिंसा को अपनाना उसके लिए जायज़ नहीं है।
मान लीजिए कोई व्यक्ति या गैर सरकारी संगठन ये दलील दे कि हम अहिंसा से काम करना पसंद करेंगे, लेकिन अगर हम शांतिपूर्ण तरीके इस्तेमाल करते हैं तब भी हमारा विरोधी हमें हमारे अधिकारों को देने से इंकार करता है तो इन परिस्थितियों में हम हथियार उठाने के अलावा क्या कर सकते हैं?
इस तर्क का जवाब है कि इन मामलों के सम्बंध में ज़िम्मेदारी सरकार के कंधों पर है न कि गैर सरकारी लोगों के कंधों पर है। अगर किसी को लगता है कि सरकार अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने में नाकाम हो रही है तो इस स्थिति में भी इन लोगों को सरकार की ज़िम्मेदारियों को अपने हाथों में लेने की इजाज़त नहीं है। ऐसी स्थिति में वो सिर्फ दो विकल्पों में से चयन कर सकते हैं: या तो सब्र करें या सिर्फ शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करें। दूसरे शब्दों में, या तो वो कुछ भी नहीं कर सकते, या फिर स्थिति से निपटने के लिए शांतिपूर्ण कोशिशें कर सकते हैं।
यहाँ एक सवाल ये उठता है कि राज्य के आतंकवाद में शामिल होने पर क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए यानि जब राज्य अनुचित हिंसा में शामिल होता हो। इस सम्बंध में इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इस तरह की हिंसा में किसी राज्य का शामिल होना उन अधिकारों का उल्लंघन हैं जो अधिकार राज्य को प्राप्त हैं, जबकि गैर सरकारी लोगों का हिंसा में शामिल होना एक ऐसे काम में शामिल होना है जिसका उन्हें बिल्कुल ही कोई अधिकार नहीं है।किसी के द्वारा ऐसा कुछ किया जाना जिसका उसे कोई अधिकार नहीं है और दूसरी तरफ किसी को कानूनी तौर पर प्राप्त अधिकार का उसके द्वारा दुरुपयोग करने के बीच अंतर है।
इस शब्दों में अगर कोई गैर सरकारी समूह किसी भी बहाने से हिंसा में शामिल है, तो निश्चित रूप से ये अनुचित होगा। जबकि दूसरी तरफ अगर कोई सरकार अनुचित हिंसा में शामिल होती है तो ये कहा जाएगा कि उसे हिंसा का उपयोग करने के अपने अधिकार को केवल वैध तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। इस अधिकार का दुरुपयोग करके कोई भी सरकार खुद को गैर सरकारी लोगों की तरह अपराधी में बदल सकती है।
इस बिंदु को एक उपमा की मदद से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। जैसे कि एक डॉक्टर अपने मरीज़ के शरीर के गलत हिस्से पर आपरेशन करने के लिए अपनी सर्जरी की चाकू का इस्तेमाल करता है। इस मामले में वो अपने अधिकार के दुरुपयोग का दोषी होगा जो कि उसे हासिल है। एक योग्य चिकित्सक निश्चित रूप से रोगी के बीमारी वाले भाग पर आपरेशन करने के लिए अपनी सर्जरी वाली चाकू का इस्तेमाल करने का अधिकार रखता है, लेकिन वो गलत हिस्से पर आपरेशन करने का कोई अधिकार नहीं रखता है। दूसरी तरफ कोई व्यक्ति जो डॉक्टर नहीं है उसे किसी भी बहाने से किसी भी स्थिति में सर्जरी का चाकू इस्तेमाल करने का कोई अधिकार नहीं है। उसका ऐसा करना हर एक परिस्थिति में गलत होगा।
[1. विभिन्न भाषाओं में मौलाना वहीदुद्दीन खान की किताबें इंटरनेट से मुफ्त डाउनलोड की जा सकती हैं, इसके लिए http://www.cpsglobal.org/books/mwk पर क्लिक करें।
2. मौलाना वहीदुद्दीन खान के महत्वपूर्ण लेखों के अनुवाद पर आधारित अंग्रेज़ी मासिक पत्रिका 'Spirit of Islam' ऑनलाइन प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए www.spiritofislam.co.in पर क्लिक करें।
3. मौलाना वहीदुद्दीन खान ने कुरान का सरल और सुंदर अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। जो कि मौलाना की व्याख्या के साथ और उसके बिना दोनों रूपों में उपलब्ध है।
अगर आप चाहते हैं कि एक मुफ्त कापी आपको भेजी जाए तो http://cpsglobal.org/quran/free पर क्लिक करें।
URL for this article:
http://www.newageislam.com/hindi-section/maulana-wahiduddin-khan,-tr-new-age-islam/what-is-terrorism-in-the-light-of-islamic-teachings?-इस्लामी-शिक्षा-की-रौशनी-में-आतंकवाद-क्या-है?/d/13455
(अंग्रेज़ी से अनुवाद: न्यु एज इस्लाम)
आज 'आतंकवाद' एक प्रचलित शब्द बन गया है। दुनिया भर में लोग इसके बारे में लिख रहे हैं और इस पर बातें कर रहे हैं। लेकिन जहां तक मैं जानता हूँ अभी तक इस शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा सामने नहीं आई है। लोग आतंकवाद की निंदा करते हैं, लेकिन अब भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं कर सकते कि ये क्या है।
मैंने इस्लामी शिक्षा की रौशनी में इस सवाल को समझने की कोशिश की है। आतंकवाद की मेरी परिभाषा ये है कि ये गैर सरकारी लोगों के द्वारा सशस्त्र संघर्ष है।
इस्लाम स्वतंत्रता के अधिकार को स्वीकार करता है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति या समूह को राजनीतिक उद्देश्यों या अपने समुदाय के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने का अधिकार है। उस समय तक ये अधिकार बना रहता है जब तक कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई व्यक्ति आक्रमकता में शामिल न हो। इस्लाम में सिर्फ स्थापित सरकार को ही हथियार का इस्तेमाल करने या सैन्य कार्रवाई करने का अधिकार है, और वो भी इसकी असल में ज़रूरत पेश आने पर ही कर सकती है। गैर सरकारी संगठनों को किसी भी बहाने से हथियार उठाने का हक़ नहीं है। मैंने अपनी कई किताबों में इस इस्लामी आदेश के बारे में विस्तार से लिखा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सिद्धांतों के अनुसार स्थापित सरकारों को अपराधियों को सज़ा देने और हमलावरों के खिलाफ अपनी रक्षा का अधिकार हासिल है। ये भी एक इस्लामी सिद्धांत है। इस सिद्धांत की रौशनी में आतंकवाद को कोई भी गैर सरकारी लोगों के द्वारा सशस्त्र कार्रवाई में व्यस्त होने के रूप में परिभाषित कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गैर सरकारी लोग हिंसा का सहारा लेने के लिए किस बहाने का इस्तेमाल करते हैं, किसी भी परिस्थिती में ये कार्रवाई अस्वीकार्य है। अगर किसी गैर सरकारी व्यक्ति को ये लगता है कि किसी खास देश में लोगों के साथ अन्याय किया जा रहा है या मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, तो उसे सिर्फ शांतिपूर्ण तरीके का इस्तेमाल करते हुए इस स्थिति से निपटने की कोशिश करने का अधिकार है। लेकिन किसी भी हालत या बहाने के तहत हिंसा को अपनाना उसके लिए जायज़ नहीं है।
मान लीजिए कोई व्यक्ति या गैर सरकारी संगठन ये दलील दे कि हम अहिंसा से काम करना पसंद करेंगे, लेकिन अगर हम शांतिपूर्ण तरीके इस्तेमाल करते हैं तब भी हमारा विरोधी हमें हमारे अधिकारों को देने से इंकार करता है तो इन परिस्थितियों में हम हथियार उठाने के अलावा क्या कर सकते हैं?
इस तर्क का जवाब है कि इन मामलों के सम्बंध में ज़िम्मेदारी सरकार के कंधों पर है न कि गैर सरकारी लोगों के कंधों पर है। अगर किसी को लगता है कि सरकार अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने में नाकाम हो रही है तो इस स्थिति में भी इन लोगों को सरकार की ज़िम्मेदारियों को अपने हाथों में लेने की इजाज़त नहीं है। ऐसी स्थिति में वो सिर्फ दो विकल्पों में से चयन कर सकते हैं: या तो सब्र करें या सिर्फ शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करें। दूसरे शब्दों में, या तो वो कुछ भी नहीं कर सकते, या फिर स्थिति से निपटने के लिए शांतिपूर्ण कोशिशें कर सकते हैं।
यहाँ एक सवाल ये उठता है कि राज्य के आतंकवाद में शामिल होने पर क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए यानि जब राज्य अनुचित हिंसा में शामिल होता हो। इस सम्बंध में इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इस तरह की हिंसा में किसी राज्य का शामिल होना उन अधिकारों का उल्लंघन हैं जो अधिकार राज्य को प्राप्त हैं, जबकि गैर सरकारी लोगों का हिंसा में शामिल होना एक ऐसे काम में शामिल होना है जिसका उन्हें बिल्कुल ही कोई अधिकार नहीं है।किसी के द्वारा ऐसा कुछ किया जाना जिसका उसे कोई अधिकार नहीं है और दूसरी तरफ किसी को कानूनी तौर पर प्राप्त अधिकार का उसके द्वारा दुरुपयोग करने के बीच अंतर है।
इस शब्दों में अगर कोई गैर सरकारी समूह किसी भी बहाने से हिंसा में शामिल है, तो निश्चित रूप से ये अनुचित होगा। जबकि दूसरी तरफ अगर कोई सरकार अनुचित हिंसा में शामिल होती है तो ये कहा जाएगा कि उसे हिंसा का उपयोग करने के अपने अधिकार को केवल वैध तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। इस अधिकार का दुरुपयोग करके कोई भी सरकार खुद को गैर सरकारी लोगों की तरह अपराधी में बदल सकती है।
इस बिंदु को एक उपमा की मदद से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। जैसे कि एक डॉक्टर अपने मरीज़ के शरीर के गलत हिस्से पर आपरेशन करने के लिए अपनी सर्जरी की चाकू का इस्तेमाल करता है। इस मामले में वो अपने अधिकार के दुरुपयोग का दोषी होगा जो कि उसे हासिल है। एक योग्य चिकित्सक निश्चित रूप से रोगी के बीमारी वाले भाग पर आपरेशन करने के लिए अपनी सर्जरी वाली चाकू का इस्तेमाल करने का अधिकार रखता है, लेकिन वो गलत हिस्से पर आपरेशन करने का कोई अधिकार नहीं रखता है। दूसरी तरफ कोई व्यक्ति जो डॉक्टर नहीं है उसे किसी भी बहाने से किसी भी स्थिति में सर्जरी का चाकू इस्तेमाल करने का कोई अधिकार नहीं है। उसका ऐसा करना हर एक परिस्थिति में गलत होगा।
[1. विभिन्न भाषाओं में मौलाना वहीदुद्दीन खान की किताबें इंटरनेट से मुफ्त डाउनलोड की जा सकती हैं, इसके लिए http://www.cpsglobal.org/books/mwk पर क्लिक करें।
2. मौलाना वहीदुद्दीन खान के महत्वपूर्ण लेखों के अनुवाद पर आधारित अंग्रेज़ी मासिक पत्रिका 'Spirit of Islam' ऑनलाइन प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए www.spiritofislam.co.in पर क्लिक करें।
3. मौलाना वहीदुद्दीन खान ने कुरान का सरल और सुंदर अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। जो कि मौलाना की व्याख्या के साथ और उसके बिना दोनों रूपों में उपलब्ध है।
अगर आप चाहते हैं कि एक मुफ्त कापी आपको भेजी जाए तो http://cpsglobal.org/quran/free पर क्लिक करें।
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