Hridayesh Joshi: चिपको आंदोलन से बहुत बड़ा है सुंदरलाल बहुगुणा का संघर्ष / Jagdish Krishnaswamy: Sunderlal Bahuguna had wide political acceptance

शुक्रवार को सुंदरलाल बहुगुणा के निधन के साथ हिमालय में पर्यावरणीय संघर्ष और चेतना के एक अध्याय का समापन हो गया.   93 साल के सुंदरलाल कोरोना से पीड़ित थे और पिछली 8 मई को उन्हें ऋषिकेश के एम्स में भरती किया गया था.  बहुगुणा को सत्तर के दशक में उत्तराखंड में चले चिपको आंदोलन से जुड़े होने के कारण "चिपकोनेता के नाम से जाना जाता है लेकिन आमजन और पर्यावरण के लिए उनके संघर्ष की कहानी की तो यह बहुत छोटी कड़ी है. 

सच्चे गांधीवादी: नौ जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी ज़िले के मरूड़ा गांव में जन्मे बहुगुणा का जीवन पर्यावरण, राजनीति, समाज सेवा और पत्रकारिता समेत बहुत सारे अनुभवों को समेटे था. उनकी समझ गांधी के विचारों से प्रेरित थी. उन्होंने 13 साल की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया. किशोरावस्था में  कौसानी में गांधी सरला बहन के आश्रम में उनका वक्त गुजारा और वहीं उनकी चेतना विकसित हुई. यह गांधी का प्रभाव ही था कि बहुगुणा ने अपने पूरे जीवन में इस बात के लिये प्रयत्न किया कि कथनी और करनी में अंतर ना हो. वह अपना छोटे से छोटा काम भी स्वयं ही करते और जब उनकी पर्यावरणीय चेतना विकसित हुई तो उन्होंने एक सस्टेनेबल और प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली अपनाई.

बहुगुणा ने एक बार कहा, "मैं चावल नहीं खाता क्योंकि धान की खेती में बहुत पानी की खपत होती है. मुझे पता नहीं कि इससे पर्यावरण संरक्षण की कोशिश कितनी मजबूत होगी लेकिन मैं प्रकृति के साथ सहजीविता के भाव के साथ जीना चाहता हूं ताकि कोई अपराध बोध हो.

युवावस्था में बहुगुणा ने स्यालरा में पर्वतीय जन जीवन मंडल की स्थापना की और दलित बच्चों और बालिकाओं को शिक्षित करने का काम शुरू किया. उन्होंने उत्तराखंड के बूढ़ा केदार में दलित परिवारों के साथ जीवन बिताया. एक ही घर में सोये और भोजन किया. यह वह दौर था जब जाति की बेड़ियां बहुत मजबूत थीं और और गांधीवादी छुआछूत के खिलाफ संघर्ष तेज कर रहे थेsource: click here

JAGDISH KRISHNASWAMY: Sunderlal Bahuguna had wide political acceptance

Sunderlal Bahuguna was one of the pioneering and inspiring leaders of the environmental movement in India, an irreplaceable gem for very diverse reasons. With his Gandhian background, frugal lifestyle and a grounded and cultural base in the Garhwal Himalayas, he was a contrasting figure when compared to other environmentalists or wildlife conservationists of that era who were often from urban, privileged backgrounds. At the time when Bahuguna was beginning to make his impact, in the late 1970s and 80s, his efforts added new dimensions to the already existing fledgling green movement in India, just beginning to take shape.

Bahuguna’s Gandhian background, deeply seated in the larger local cultural and traditional system ensured he was able to straddle both sides of the ideological spectrum—Left and Right, within the environmental discourse and community. Later on during the struggle against the Tehri Dam this brought some controversies and criticisms for him, which in my opinion was somewhat misplaced. The environmental movement in many parts of India is often identified on the Left-of-Centre but to have an impact, you sometimes need icons and leaders who command respect across the political spectrum— Bahuguna was one of those figures….


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