पुजारी का कर्म
पुजारी चिताओं के बीच खड़ा है,
उसके मंत्रोच्चार उसके भीतर ही घुल रहे हैं,
चिताओं की अग्नि में,
लकड़ियों के जलने की आवाज़ और धुंआं मुखर है।
अब तक उसने कभी दिन भर में,
दो-एक से अधिक अंतिम संस्कार नहीं कराये,
अब वह हर रोज़ सैकड़ों मृतकों के लिये मंत्र पढ़ रहा है,
श्मशान में मज़दूर एक-एक कर अर्थियां ढो रहे हैं।
शवों के बीच जैसे खो चुकी चिता सामग्री,
ऐसे में कोई परमात्मा से क्या दुआ करे,
अनजान चेहरों पर आंसुंओं के समंदर में,
वह बस लपटों में शवों को धुंआं होते देखता है।
आसपास बिखरी हताशा और विक्षोभ,
अपना कर्तव्य निभाता एक पुजारी,
मैं मंत्रों से अधिक उस की आंखों को महसूस करता हूं,
जो अभी दुख का अनंत सागर समेटे है।
रामकरन
ओम शांति, ओम शांति
दिलीप सिमियन
अनुवाद – हृदयेश जोशी
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