Appeal to Voters to Protect Democracy: People’s Alliance for Democracy & Secularism // जनतंत्र की रक्षा के लिए तमाम मतदाताओं से अपील
Dear fellow citizens
Sixty seven years ago, independent India adopted a democratic constitution that created a platform for equality and justice by ensuring the participation of all. Our constitution-makers were concerned to maintain a secular society free from any divisions of caste, sect and religion.
What has become of that vision? A large part of the population lives in extreme poverty. Millions of Indians are denied their fundamental rights. There are strong linkages amongst powerful capitalists, biased officials and unscrupulous political representatives. The political system is in danger of being taken over and run for the benefit of the rich, rather than for the vast bulk of the Indian people. Communal forces of all colours thrive in our society. Their growth has been evident since the Delhi carnage of 1984. Biased behavior has appeared in the media, police, bureaucracy and executive. We are witnessing the criminalisation of the state. One example of this is the operation of private armies all over the country.
The Sixteenth Lok Sabha elections are an opportunity for us to preserve democracy. The RSS has emerged as a direct participant, discarding its ‘cultural’ mask. It has openly intervened in the major decisions of the BJP. Its ideology is based upon a fanatic version of nationalism . The so-called Parivar has been implicated in numerous communal incidents and the destruction of Babri Masjid in 1992. Today vast amounts of money and cadre have been mobilized in the cause of the NDA’s prime ministerial candidate. This person is an incompetent Chief Minister who presided over the crime committed in Godhra and the orgy of rape, murder, arson and looting that followed. In many cases, intervention from outside Gujarat was required to secure justice. Zakia Jafri’s husband and neighbours were butchered, and she is still asking the courts to indict Modi for criminal conspiracy. A police investigation report is being hailed as if it were a judicial acquittal. In 2003 Modi’s rival Haren Pandya was killed in a so-called terrorist attack – his widow is still fighting for justice. Modi has tried to boost his popularity through fake encounters and accusations of assassination plots, many of these cases are still in the courts. Gujarat’s anti-terrorist police units were directed to spy upon a woman who was not even suspected of being a terrorist. Narendra Modi bears responsibility for the collapse of law and order in Gujarat. We may note that Gujarat’s state assembly has functioned on average 30 to 32 days per year.
One of Modi’s ministers has been convicted of illegal mining practices. Another was in office until she was charged with conspiracy and murder. Modi resisted the appointment of a state Lokayukta for ten years from 2003. When the Governor and Chief Justice selected Justice R. A. Mehta for the post in 2011, Modi spent crores in legal fees to challenge the appointment. After the Supreme Court upheld it, the state government refused to cooperate with Mehta, leading him to decline the position. Then it amended the Lokayukta Act to make it a toothless body. Modi may have learned a lesson from the fate of his friend Yedyurappa, former BJP Chief Minister of Karnataka. Yet he talks of rooting out corruption!
These are some features of the ‘Gujarat model’. What will result under a central government controlled by Modi and his corporate backers? We have seen how peaceful protests against the Patel statue, or a nuclear power station in Bhavnagar have met with police repression. Gujarat records the highest number of attacks on RTI activists. Gujarat remains a bastion of Dalit oppression. Surveys have found the practice of untouchability in over 90% of villages and manual scavenging present even in Ahmedabad. Seizures of land at low prices, violation of environmental regulations, erosion of workers rights, phone-tapping and contempt for the rule of law will affect farmers, workers, women, democratic activists and honest officials. Modi has used his position to accuse India’s Defence Minister of being a Pakistani agent. Soon anyone daring to criticise Modi will be hounded as a traitor. Is this what we need in a prime minister?
The health of Indian democracy requires that such political forces be checked and defeated. Despite their talk of development, their strong links with corporate interests should warn us of the danger of political tyranny. If this continues, it will endanger the rights not only of this or that particular group, but the very survival of constitutional democracy. Do not be fooled by talk of a stable government. Only dictators think stability is more important than constitutionally guaranteed citizens’ rights.
We must choose political forces that stand for humanity, equality and justice. Choose an inclusive, not divisive idea of India. Use your vote for socio-economic emancipation. Defend your right to obtain justice, to think freely, to protest and to struggle for a better life. Reject communal hate and choose mutual respect and dialogue. This is our vote. This is our country. We call upon voters to defeat authoritarian forces in the coming elections.
In Solidarity,
People’s Alliance for Democracy and Secularism
जनतंत्र की रक्षा के लिए तमाम मतदाताओं से अपील
प्रिय नागरिक साथियों,
सडसठ साल पहले आज़ाद भारत ने एक जनतांत्रिक संविधान को स्वीकारा जिसने सभी की सहभागिता को सुनिश्चित करते हुए समानता और न्याय के लिए एक मंच का निर्माण किया। हमारे संविधान निर्माता इस बात के प्रति चिन्तित थे कि जाति, सम्प्रदाय और धर्म के विभाजनों से परे एक धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण किया जाए।
सोचने की बात है कि आखिर उस जनतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष दृष्टि का क्या नतीजा निकला ? आबादी का विशाल हिस्सा आज भी भयानक गरीबी में जी रहा है। करोड़ों भारतीयों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जाता है। ताकतवर पूंजीपतियों, पूर्वाग्रहों से लैस नौकरशाहों और बेईमान राजनीतिक नुमाइन्दों के बीच मौजूद अपवित्रा गठबन्धनों से ऐसी प्रवृत्तियों को शह मिलती है। इसका नतीजा है कि भारत की जनता की विशाल आबादी के हितों के लिए नहीं बल्कि धनी लोगों के हितों एव हकों की रक्षा के लिए राजनीतिक व्यवस्था के संचालित होने का खतरा बढ़ रहा है। हमारे समाज में तरह तरह की साम्प्रदायिक ताकतें फलती फूलती दिखती है। 1984 में दिल्ली में हुए खूनखराबे से लेकर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दिनों से ही उनकी बढ़ोत्तरी दिख रही है। मीडिया, पुलिस, नौकरशाही और कार्यपालिका सभी स्थानों पर पूर्वाग्रहों से लैस व्यवहार सरेआम दिखता है। हम लोग राज्य के अपराधीकरण को देख रहे हैं। इसका एक उदाहरण है मुल्क में चारों तरफ निजी सेनाओं का उभार।
सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव हमारे सामने जनतंत्रा की रक्षा करने का अवसर है। अपना ‘सांस्कृतिक’ मुखौटा फेंकते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसमें एक सीधे सहभागी के तौर पर उभरा है। उसने भाजपा के मुख्य निर्णयों में सीधे हस्तक्षेप किया है। उनकी विचारधारा राष्ट्रवाद के एक संकीर्ण नज़रिये पर टिकी है। कथित परिवार तमाम साम्प्रदायिक घटनाओं और 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में लिप्त रहा है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन के प्रधानमंत्राी पद के उम्मीदवार के लिए प्रचण्ड मात्रा में पैसे और काडरों की लामबन्दी की गयी है। यह शख्स एक अकार्यक्षम मुख्यमंत्राी है जो गोधरा के अपराध वक्त और उसके बाद पूरे सूबे में बलात्कार, हत्या, आगजनी और लूटपाट का जो सिलसिला चला, उस वक्त राज्य की बागडोर सम्भाले था। कई सारे मामलों में न्याय को पाने के लिए गुजरात से बाहर से हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी है। ज़किया जाफरी के पति पूर्व सांसद एहसान जाफरी और उनके पड़ोसियों का कतलेआम किया गया और वह आज भी इस आपराधिक षडयंत्रा में मोदी को अभियुक्त बनाने के लिए अदालत में हस्तक्षेप की हुई हैं। एक पुलिसिया जांच के रिपोर्ट को न्यायिक रिहाई के तौर पर पेश किया जा रहा है। वर्ष 2003 में मोदी के प्रतिद्धंदी हरेन पांडया की कथित आतंकवादी हमले में हत्या हुई – उसकी विधवा आज भी न्याय के लिए संघर्षरत है। मोदी ने अपनी लोकप्रियता को फर्जी मुठभेड़ों और हत्या के षडयंत्रों के खुलासे से बढ़ाने की कोशिश की है, जिनमें से कई मामले आज भी अदालत के सामने हैं। गुजरात की आतंकवादी विरोधी पुलिस की इकाइयों को एक महिला की जासूसी करने का निर्देश दिया जाता है जिस पर आतंकवादी होने का आरोप तक नहीं है। गुजरात में कानून और व्यवस्था के ध्वस्त होने के लिए नरेन्द्र मोदी सीधे जिम्मेदार है। हम इस बात को भी नोट कर सकते हैं कि गुजरात की राज्य विधानसभा हर साल औसतन 30-32 दिन चली है।
मोदी के एक मंत्राी को गैरकानूनी खदानें चलाने के लिए दोषी साबित किया जा चुका है। दूसरी पर जब तक दंगे में शामिल होने के लिए षडयंत्र रचने एवं हत्या करने के आरोप नहीं लगे तब तक वह मंत्रिपद सम्भालती रहीं। मोदी ने वर्ष 2003 से राज्य लोकायुक्त की नियुक्ति का दस साल तक लगातार विरोध किया। जब राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश ने इस पद के लिए वर्ष 2011 में न्यायमूर्ति आर ए मेहता का चयन किया तो मोदी ने इस नियुक्ति को चुनौती देने के लिए करोड़ो रूपए कानूनी फीस में खर्च किए। जब सुप्रीम कोर्ट ने इस नियुक्ति को सही ठहराया तब राज्य सरकार ने मेहता के साथ सहयोग करने से इन्कार किया जिसके चलते उन्होंने पदत्याग करने का निर्णय लिया। अन्ततः उसने लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन किया तथा उसे एक दन्तविहीन इकाई में बदल दिया। दरअसल मोदी ने अपने दोस्त तथा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्राी येदियुरप्पा की नियति से जरूरी सबक लिया होगा। इसके बावजूद वह भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते रहते हैं। गुजरात शासन प्रणाली की यह चन्द विशिष्टताएं हैं। इस मॉडल का क्या प्रभाव होगा अगर केन्द्र सरकार पर मोदी और उनके कार्पोरेट हिमायतियों का नियंत्राण हो जाता है ? पटेल की मूर्ति के खिलाफ शान्तिपूर्ण प्रदर्शन या भावनगर में नाभिकीय पॉवर स्टेशन या पर्यावरणीय उल्लंघन को लेकर हुए प्रदर्शनों को पुलिस दमन का शिकार होना पड़ा है। गुजरात उन राज्यों में शुमार हैं, जहां सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं पर सबसे अधिक हमले हुए। गुजरात दलित उत्पीड़न का गढ़ बना हुआ है। सर्वेक्षण बताते हैं कि राज्य के 90 फीसदी से अधिक गांवों में आजभी अस्पृश्यता मौजूद है और अहमदाबाद जैसे शहर में आज भी हाथ से मैला उठाने की प्रथा अस्तित्व में है। मामूली कीमत पर जमीन पर कब्जे, पर्यावरणीय नियमनों का उल्लंघन, मजदूर अधिकारों का छीजन, फोन टैपिंग या कानून के राज्य के प्रति तिरस्कार एक तरह से मजदूरों और किसानों, महिलाएं, जनतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं और ईमानदार अधिकारियों को प्रभावित करेगा। मोदी ने अपने पद का इस्तेमाल करते हुए भारत के रक्षा मंत्राी पर यह आरोप लगाया है कि वह पाकिस्तानी एजेण्ट है। जल्द ही ऐसा कोईभी व्यक्ति जो मोदी की आलोचना की हिम्मत करेगा, उसके साथ देशद्रोही जैसा सलूक किया जाएगा। क्या हम यही सब बातें अपने प्रधानमंत्राी में चाहते हैं ?
यह भारतीय जनतंत्र के स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी है कि ऐसी राजनीतिक ताकतों को काबू में रखा जाय और उन्हें राजनीतिक शिकस्त दी जाए। विकास के उनके तमाम दावों के बावजूद, कार्पोरेट हितों के साथ उनके गहन रिश्तों को देखते हुए हमें राजनीतिक तानाशाही के खतरे के प्रति सचेत रहना चाहिए। अगर यह सिलसिला जारी रहा तो वह न केवल इस या उस विशिष्ट समूह के अधिकारों को खतरे में डाल देगा बल्कि संवैधानिक जनतंत्रा का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। स्थायी सरकार की बातों के बहकावे में न आएं। सिर्फ तानाशाह ही सोचते हैं कि संविधान द्वारा गारंटीशुदा नागरिक अधिकारों की तुलना में स्थिरता अधिक महत्वपूर्ण है।
हमें चाहिए कि हम ऐसी राजनीतिक ताकतों को चुनें जो इन्सानियत, बराबरी और इन्साफ के हक़ में खड़ी हों। भारत के एक समावेशी होने न कि विघटनकारी होने के विचार को चुनें। अपने वोट को सामाजिक-आर्थिक मुक्ति के लिए इस्तेमाल करें। न्याय पाने के अपने अधिकार , स्वतंत्र रूप से चिन्तन, विरोध करने और बेहतर जीवन के लिए संघर्ष करने के अपने अधिकार की हिफाजत करें। साम्प्रदायिक नफरत को खारिज करें और परस्पर सम्मान और सम्वाद के रास्ते को चुनें। यह हमारा वोट है। यह हमारा मुल्क है। हम सभी से आवाहन करते हैं कि आने वाले चुनावों में अधिनायकवादी ताकतों को शिकस्त दें।
एकजुटता के साथ
‘जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए जनसमन्वय’
(पीपुल्स अलायन्स फॉर डेमोक्रेसी एण्ड सेक्युलेरिजम)