निरमा से नमो तक ज्यां द्रेज // Jean Drèze - From Nirma to NaMo

निरमा से नमो तक
ज्यां द्रेज

नरेंद्र मोदी की रैलियों की हकीकत मीडिया में छपी रिपोर्टो से किस कदर अलग होती है- यह जानना रोचक हो सकता है।. इस अन्तर को खुद से समझने के लिए मैंने हाल ही में रांची में आयोजित उनकी रैली में शिरकत की. दस दिन पहले से ही रैली के लिए पूरे शहर में जोर-शोर से प्रचार अभियान चल रहा था. मोदी और उनकी पार्टी के अन्य सहयोगियों के बड़े-बड़े पोस्टर शहर के लगभग हर चौक -चौराहे पर लगे थे- कहीं कहीं तो एक जगह दस-दस, बारह-बारह पोस्टर! चाहे आप किसी दिशा में जा रहे हों, शहर की मुख्य सड़कों पर बिना मोदी से नजरें मिलाये निकलना लगभग असंभव था.

रैली बड़ी सुनियोजित थी और भीड़ जबरदस्त थी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सांगठनिक कौशल उम्दा है और उसके पास बहुत पैसा है. किसी को यह पूछने की सहज रुचि हो सकती है कि आखिर यह पैसा आता कहां से है. लेकिन मुख्यधारा की अन्य पार्टियों की तरह , भाजपा भी वित्तीय पारदर्शिता के मान-मूल्यों का विरोध करती रही है. मोदी के आगमन से पहले पार्टी के कई दिग्गज नेता बोले, लेकिन भीड़ ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी. साफ था कि वे मुख्यत: बहुप्रचारित मोदी की एक झलक मात्र पाने के लिए आये थे. केवल अर्जुन मुंडा ही कुछ हद तक खुद को भीड़ से जोड़ पाने में कामयाब हो सके.

मोदी का हेलीकॉप्टर फिल्मी अंदाज में उतरा तो भीड़ ने जोरदार हर्षध्वनि की. पार्टी के कार्यकर्ता इसमें आगे रहे लेकिन हर कोई अपने तारनहार के स्वागत में खड़ा हो गया. जोरदार साउंड एफेक्ट,वीडियो क्लिपों और ‘नमो-नमो’ की गूंज के साथ स्टेज पर मोदी की एंट्री की तैयारी बड़े नाटकीय ढंग से की गयी थी. पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए मोदी की तुलना भगवान राम से कर डाली.

मोदी बहुत नाटकीय स्वर और भाव-भंगिमाओं के साथ बोले. बेहतरीन प्रभाव पैदा करने के लिए उन्होंने अपनी आवाज में उतार-चढ़ाव का इस्तेमाल किया, कई जगह बिल्कुल सुविचारित अंतराल लिये. लेकिन यह सारी भाषणबाजी किसी फिल्म के ऑडिशन का भान करा रही थी. विषय-वस्तु एकदम सपाट थी। शायद यही वजह थी कि उनके भाषण के शुरू होने के कुछ ही समय बाद लोग मैदान छोड़ते नजर आये. और जो रुके भी रहे, उनमें भी मोदी की बातों के प्रति कोई खास उत्साह नजर नहीं आया. पार्टी कार्यकर्ताओं के इशारे के बावजूद लोगों ने कभी-कभार ही हर्ष ध्वनि की या तालियां बजायीं.

मुझे जान पडा कि मोदी श्रोताओं से संवाद कायम कर पाने में नाकामयाब रहे. इसकी शायद एक वजह यह रही हो कि वे यहां एक बाहरी व्यक्ति की तरह आये थे, उन्हें झारखंड के बारे में जल्दबाजी में कुछ-कुछ बताया गया होगा, खुद उन्हें झारखंड के प्रति कोई खास अहसास ना नहीं था. दूसरी वजह यह भी रही कि वह वोट के लिए, दूसरे नेताओं द्वारा किये जानेवाले चुनावी वादों से परे नहीं जा पाये. उन्होंने लोगों को राज्य की दयनीय स्थिति की ही ज्यादा याद दिलायी, यह भूलते हुए कि सन् 2000 में राज्य के बनने के बाद से 13 सालों में आठ साल से ज्यादा समय तक भाजपा ही सत्ता में रही है.

इस रैली से मैंने एक चीज सीखी कि आज राजनीति और व्यवसाय के बीच का अंतर एकदम कम हो गया है. चुनाव अभियान जन-संपर्क उद्योग के एक अन्य क्षेत्र के तौर पर विकसित हो रहा है. कुछ लोग निरमा बेचते हैं, तो कुछ लोग नमो को बेचते हैं. दोनों को बेचने के लिए एक ही तरह की विज्ञापन एजेंसियां एक ही तरह के हथकंडे अपनाती हैं.

झारखंड के लोग इससे अधिक के हकदार हैं। प्रचार का कोई भी हथकंडा इस तथ्य को झुठला नहीं सकता कि बीते 12 वर्षो में झारखंड की बदहाली के लिए भाजपा सबसे बड़ी दोषी है. कांग्रेस सहित मुख्यधारा की अन्य पार्टियां भी राज्य के संसाधनों की लूट में शामिल रही हैं. उम्मीद करनी चाहिए कि इन सबसे अलग विचारदृष्टि के साथ कोई सामने आये और लोगों के सामने बेहतर विकल्प प्रस्तुत करे, जैसा कि एक हद तक हाल ही में दिल्ली में हुआ.
(Prabhat Khabar, 31 December 2013)

http://sacw.net/article7108.html

Jean Drèze - From Nirma to NaMo


It is interesting how media reports of Narendra Modi’s rallies differ from the real thing. To see the difference for myself, I attended Narendra Modi’s recent rally in Ranchi. More than 10 days in advance, the rally had been the object of a massive publicity campaign in Ranchi. There were giant posters of Modi and his party colleagues at almost every chauraha, sometimes ten or twelve at a time. On the main roads, it was almost impossible to look in any direction without meeting Modi’s eyes.

The rally was very well planned and the crowd was huge. The Bharatiya Janata Party (BJP) obviously has great organisational skills, and a lot of money. It would be interesting to know where the money comes from. But like other mainstream parties, the BJP has resisted any financial transparency norms. A series of party stalwarts spoke before Modi arrived, but the crowd did not show much interest. Clearly, they had come mainly to get a glimpse of the famous Modi. Only Arjun Munda managed to connect with the crowd to some extent.

When Modi’s helicopter arrived, Bollywood-style, the crowd woke up with loud cheers. The party workers took the lead but everyone stood up to greet the legendary saviour. His entry on the stage was skilfully choreographed, with powerful sound effects, video clips, and chants of “NaMo, NaMo”. BJP President Rajnath Singh warmed up the audience, comparing Modi to Ram himself.

Modi spoke with dramatic tone and gestures. He raised and lowered his voice for best effect, with solemn pauses in between. But his rhetoric had the contrived feel of a film audition and the content was flat. Perhaps that is why people started leaving the grounds in large numbers soon after he started speaking. Those who remained showed little interest in what he said and rarely clapped or cheered despite prompting from party workers.

To me it looked like Modi had failed to connect with the audience. One reason, perhaps, is that he came across as an outsider, who had been quickly briefed about Jharkhand but had no feel for it. Another reason is that he failed to go beyond the platitudinous promises of any politician who is begging for people’s votes. He kept asking people to reflect on the mess they were in, blissfully forgetting that Jharkhand has been under BJP rule for 8 out of 13 years since its creation in 2000.

I have learnt one thing from this rally: there is little difference today between politics and business. Electoral campaigns are just another job for the public relations industry. Some sell Nirma, others sell NaMo – the same advertisement agencies use the same techniques for both purposes. The people of Jharkhand deserve better. No amount of propaganda can hide the fact that the BJP bears a heavy responsibility for Jharkhand’s ruin during the last twelve years. Other mainstream parties, including the Congress, have also taken part in the loot. Let us hope that others with a different vision will come forward and present the people of Jharkhand with a real alternative, as happened recently – to some extent - in Delhi.
(Prabhat Khabar, 31 December 2013)

Popular posts from this blog

Third degree torture used on Maruti workers: Rights body

Haruki Murakami: On seeing the 100% perfect girl one beautiful April morning

Albert Camus's lecture 'The Human Crisis', New York, March 1946. 'No cause justifies the murder of innocents'

The Almond Trees by Albert Camus (1940)

Etel Adnan - To Be In A Time Of War

After the Truth Shower

Rudyard Kipling: critical essay by George Orwell (1942)