Himanshu Kumar: An Open Letter to Naveen Jindal

Dear Mr Jindal,
I just finished watching a few videos showing security forces mercilessly beating villagers in Orissa, along with some heartrending pictures of the attack. One of the pictures was of a year and a half old child with a broken foot, another of a seventy year old woman with her blood drenched face, and yet another of a tear stricken eighty year old man with blood oozing from his forehead. Another video shows a laborer lying on a hospital bed with his broken leg, moaning from an unbearable pain, and unable to work for next three months.


I was seized with uncontrollable anger and shame as I watched these videos. I was ashamed of myself that while all these atrocities were being perpetrated, I was powerless to stop them. And who was the target of my anger? This I will describe in this letter. Mr Jindal, According to one survey, you are the richest person in this country. You make more than 66 crore rupees annually. That comes to more than 5 crore rupees per month. As per Government economists, any villager who earns more than Rs 28 per day is not considered poor. So according to the Government, your income is 66000 times the income of an average person above the poverty line. 




I cannot believe that you are so much richer than a person earning Rs 28 a day because you work 66000 times harder. You acquired your ill-gotten wealth by robbing the indigents of this country of the resources hidden beneath their lands, and by selling them. Do you see any difference between a hood who knives and robs someone on the one hand, and you who rob the poor by shedding their blood, on the other? You may disagree, but the poor on whom you have unleashed such brutality with the help of police and local hoods, cannot see even an iota of difference.

The civilized urban dwellers of this country are awed by your patriotism because the Supreme Court of India, as per a case filed by you, passed a judgment according to which every citizen of this country can hoist the tricolor every day at his or her home. But do you think that people mercilessly beaten by your hoods would be enthused to hoist the tricolor when the police and the Government who swear by it forcibly acquire their lands, and anyone brave enough to ask for compensation is brutally beaten by your hoods, and the police stands by silently during this open and ferocious attack on the public.

Mr Jindal, this tricolor is symbolic of the equality between you on the one hand, and the millions of poor people of this country for whom you have nothing but contempt, on the other. You should be thankful that the indigents of this country are not aware of this powerful symbolism, or else they would have grabbed you by the collar, dragged you out from your palatial dwellings, beaten you and brought you to the police station where the station in charge would have thrown you in prison, had his oath to the tricolor been sincere. But, Mr Jindal, it is clear you insist on soaking this tricolor with the blood of innocent people. Don't you dare to turn the tricolor red. Otherwise the poor will drench this tricolor in their own blood, fly it, and then stand you in a queue, where you will be forced to work all day like other poor people to earn a daily wage of Rs 28. You run a management college. Do your students know that a vast gulf separates what your college teaches, and the barbarism inherent in your own 'management style'? Do the students of the Jindal Global Law School know how its founder routinely tramples upon and has complete contempt for Law and Constitution.

In order to intimidate and harass villagers demanding compensation, you entrap them in false cases in faraway provinces, so that no one would dare to raise their voice against you. Before every land grab, your hired goons brutally attack anyone who dares to raise their voice against you. You bribe the police who throw such activists in prison. Just a few days ago, the Chhattisgarh Hight Court filed a summons against you, but given the contempt your company has for the Law, it did not even accept the notice. How can they even dare to serve the court order, when it is your money that pays for all the police vehicles in the Raigadh district, and when it is your money that has built all the police stations? Do you also teach the Law students in your college such brilliant ways to circumvent the Law?

To facilitate land grab for your benefit, the Junglemahal region of West Bengal is now infested with Government troops. These poor soldiers are now fighting against the poor people of the region resisting the armed might of the State. The poor are killing each other. When this brutal war is over, when the poor have killed each other to the last, and when you have seized their lands, you will sell the precious mineral wealth underneath these lands to foreign multinationals.

You may call this lawless looting business as usual. But your violent, brazen and shameless deeds are continuously stoking the anger of millions in this country. We will make every effort to channel this anger lest it dissipate, so that they can realize the ideals of equality, and social and economic justice which form the bedrock of our Constitution, and so that India becomes a real democracy rather than the pathetic caricature it has become, where the faux symbolism of the tricolor matters more than its meaning. If, after reading this letter, you think that I am wrong, I am willing to engage in a public discussion with you on these issues. 
http://dantewadavani.blogspot.in/2012/02/open-letter-to-naveen-jindal.html


नवीन जिन्दल को खुला पत्र
प्रिय जिन्दल साहब,
अभी उड़ीसा में ग्रामीणों पर आपके सुरक्षाकर्मियों द्वारा किये गये हमले के चित्र और वीडियो देख रहा था| चित्र में एक डेढ़ साल के बच्चे का टूटा हुआ पैर, एक सत्तर साल की बूढी का खून से लथपथ चेहरा| अस्सी साल के एक बूढ़े की डबडबाई आंखे और सिर से बहता खून| एक दूसरे वीडियो में अस्पताल के बिस्तर पर अपनी टूटी हुई टांग् के कारण तीन महीने तक काम पर न जा पाने की विवशता में सिसकता हुआ एक मजदूर दीख रहे हैं | ये सब देखते हुए मैं क्रोध और शर्म का अनुभव कर रहा था| इसमें शर्म मुझे खुद पर आ रही थी कि ये सब हमारे रहते हुए हो रहा है| और क्रोध किस-किस पर आ रहा था? वो इस पत्र में मैं लिखूंगा |


जिन्दल साहब, एक सर्वे के मुताविक आप इस देश में सबसे ज्यादा तनख्वाह पाने वाले व्यक्ति हैं| आपकी तनख्वाह सढ़सठ करोड सालाना से ज्यादा है| यानि करीब पांच करोड़ महीना से ज्यादा | और सरकारी आंकड़ों के मुताविक इस देश में एक औसत ग्रामीण अगर अट्ठाईस रुपया रोज भी कमा ले तो सरकार उसे सम्पन्न मानने लगती है| यानि सरकारी हिसाब से इस देश के संपन्न व्यक्ति और आपकी आमदनी के बीच ढाई करोड़ गुना का अंतर है| मैं ये बात कतई स्वीकार नहीं करूँगा कि आप इसलिए ज्यादा अमीर हैं क्योंकि आप उस अट्ठाईस रूपये कमाने वाले ग्रामीण व्यक्ति से ढाई करोड़ गुना ज्यादा मेहनत करते हैं| आपकी सारी अमीरी उन गरीबों की जमीनों के नीचे दबी हुई दौलत को बेचकर बनाई गई है, जिनको आपने मार-मार कर लहूलुहान कर दिया है| क्या किसी को छुरा मार कर उसका पैसा छीनने वाले गुन्डे और इन गरीबों का खून बहाकर पैसा कमाने की आपकी इन हरकतों के बीच आपको कोई अंतर दिखाई देता है ? माफ कीजियेगा आपको ऐसा न भी लगता हो पर जिन गरीबों की जमीन आपने गुंडों और पुलिस की मदद से छीन ली है वो आपको छुरा मार गुन्डे से कम नहीं समझते|


आपको इस देश के सभ्य शहरी आपकी देशभक्ति के लिये पहचानते हैं| क्योंकि आपने सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा कर के ये फ़ैसला करवाया था कि देश का हर नागरिक अपने घर पर रोज तिरंगा झंडा फहरा सकता है| लेकिन क्या आपको लगता है कि आपके गुंडों की मार से लहूलुहान लोगों का अपने घर पर वो तिरंगा लहराने का मन करता होगा, जिसकी शपथ लेकर सरकार और पुलिस आपके लिये उन गरीबों की जमीन छीन चुकी है और आपने मुआवजे मांगने वाले गरीबों पर वहशी हमला कर दिया| और तिरंगे की शपथ लेने वाली पुलिस जनता पर होने वाले इस हमले के समय चुपचाप खड़ी देखती रही !



जिन्दल साहब ये तिरंगा झंडा खून से लथपथ ग्रामीणों और आपको एक बराबर नागरिक माने जाने का प्रतीक है| शुक्र मनाइये कि इन गरीबों को अभी इस तिरंगे द्वारा जनता को दी गई बराबरी की ताकत का पता नहीं चला है वर्ना ये गरीब आपका गिरेबान पकडकर आपको आपके महल से खींचकर बाहर निकाल लेते और आपको पास के थाने तक पीटते हुए ले जाते और उस तिरंगे की सच्ची शपथ लेने वाला थानेदार आपको एक साधारण गुन्डे की तरह हवालात में बंद कर देता| लेकिन जिन्दल साहब आप तो इस तिरंगे को खून में डुबोने पर तुले हैं| तिरंगे को लाल झंडा बनाने का काम मत कीजिये| वर्ना कहीं ऐसा न हो कि गरीब तिरंगे को अपने खून में डुबोकर फहरा दे और आपको भी मजदूरों की लाइन में खड़ा कर दिया जाये और आप भी दिन भर मजदूरी करने के बाद शाम को अट्ठाईस रूपये ही लेकर घर पहुंचें |
आप मैनेजमेन्ट कालेज चलाते हैं| क्या आपके यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पता है कि आप पढ़ाते कुछ और हैं और वास्तव में मैनेजमेन्ट करते बर्बर तरीकों से हैं | क्या आपके द्वारा जो कानून पढाने का कालेज चलाया जाता है उसके विद्यार्थियों को पता है कि उनके कालेज का मालिक किस तरह कानून और संविधान को रौदता है?



अपने लिये मुआवजे की मांग करने वाले गांव के लोगों को सताने के लिये आप उन पर दूर के प्रदेशों में फर्जी मुकदमे ठोक देते हैं जिससे आइन्दा कोई भी आपके खिलाफ कभी आवाज़ न उठा पाए ! आप जमीन लेने से पहले कानून में अनिवार्य सरकारी जन सुनवाई के नाम पर अपने गुंडों की मदद से जमीन छीनने के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले लोगों पर खूनी हमले करते हैं ! आवाज़ उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस को रिश्वत देकर आप जेलों में डलवा देते हैं ! अभी कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ में हाई कोर्ट ने आपके खिलाफ एक सम्मन जारी किया लेकिन आपकी कंम्पनी ने सारे क़ानूनों को ठेंगा दिखाते हाई कोर्ट का वो नोटिस लिया ही नही ! क्योंकि रायगढ़ जिले की सारी पुलिस की गाडियां आपकी पैसे से खरीदी गयी हैं और सारे पुलिस थाने आपके पैसे से बनाए गये हैं अब इस पुलिस की क्या मजाल जो आपको कोर्ट के आदेश की तामील करवा सके ? क्या अपने ला कालेज में कानून पढने वाले छात्रों को आप ये वाली गैर कानूनी हरकतों के बारे में भी बता सकते हैं ?



आपके लिये जमीने छीनने के लिये बंगाल के जंगल महल का इलाका आज सरकारी फौजों से भर दिया गया है ! ये गरीब फ़ौजी उस इलाके में अपनी ज़मीन बचाने के लिये लड़ने वाले गरीबों से युद्ध कर रहे हैं ! गरीब एक दुसरे को मार रहे हैं ! और अन्त में गरीबों की लाशें बिछाकर जो जमीन छीनी जायेगी आप उस ज़मीन के नीचे की सार्वजनिक खनिजों की दौलत को विदेशियों को बेच कर अपने लिये और दौलत कमाएंगे ! इस भयंकर अनैतिक लूटपाट को आप शायद व्यवसाय कहते होंगे ? लेकिन आपकी ये हिंसक बेशर्म हरकतें इस देश के करोड़ों ग्रामीणों में लगातार गुस्सा भडका रही हैं ! हम कोशिश करेंगे कि गरीब का गुस्सा ज्यादा और जल्दी भडके ताकि वो भारत के संविधान में वर्णित समता और आर्थिक, सामजिक न्याय की गारंटी को जमीन पर उतार सके ! और उस लोकतंत्र को वास्तविक बना दे जिसका आप तिरंगे की ओट में रोज गला घोंट रहे हैं ! 

अगर आप इस पत्र को पढ़ने के बाद महसूस करें कि मैंने कोई भी बात् असत्य लिखी है तो मैं आपसे इन मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा करने के लिये तैयार हूं !



See also: Truth has no agenda


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