हिटलर के क्रूर तानाशाह बनने के पीछे क्या पृष्ठभूमि थी? पढ़ें यह रिपोर्ट..

हिटलर के उदय को समझने के लिये आपको पहले विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के और जर्मनी के हाल को समझना होगा - हृदयेश जोशी .. नाज़ी दौर में कोलोन में ही नहीं जर्मनी में जगह-जगह जो यातना केंद्र बने उनमें लाखों लोगों की हत्या की गई. हमारे सहयोगी हृदयेश जोशी ने इतिहासकार और आलोचक दिलीप सिमियन से बात की. उसी बातचीत के अंश

सवालहिटलर को सभी एक क्रूर तानाशाह के रूप में जानते हैं. आखिर हिटलर के बनने के पीछे क्या पृष्ठभूमि थी. हमें विस्तार से समझायें.
जवाब – हिटलर के उदय को समझने के लिये आपको पहले विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के और जर्मनी के हाल को समझना होगा. इसकी पृष्ठभूमि पहला महायुद्ध है. तब भारी संख्या में लोग मारे गये करीब 2 करोड़ लोग मारे गये. सारा समाज अस्त- व्यस्त हो गया. जर्मनी में इससे पहले लोकतंत्र नहीं था. सिर्फ लोकतंत्र की मांग करने वाली पार्टिंयां थी. महायुद्ध से 4 बड़े साम्राज्य खत्म हो गये. हिटलर के बारे में एक व्यंग्य कहा जाता है कि अगर एक लोकतात्रिक क्रांति हुई होती तो हिटलर सत्ता में आता भी नहीं. वह तो एक कॉमन सोल्जर था. पहले महायुद्ध में वह एक आम सैनिक था और उसे कुछ पदक भी मिले वीरता के लिये. वह अपने जनरलों से कहा करता था कि आप लोग एक कुलीन जाति के लोग हो और मैं तो एक सामान्य सैनिक हूं.

सवालये नस्लवादी सोच कैसे पनपी ... तभी या पहले से थी?
जवाब जर्मन आर्मी हार गई थी. र्ऑटोमन साम्राज्य, जर्मन साम्राज्य, ज़ार का रूसी साम्राज्य, ऑस्टेरो हंगरी साम्राज्य खत्म हो गये. जर्मनी में एक पुरानी लालसा थी कि वह ऑस्ट्रिया के साथ मिल जायेंगे, क्योंकि खुद को एक ही नस्ल समझते थे. इस प्रकार की नस्लवादी बातें पहले से चलती रही थी जिसमें यहूदियों को निशाना बनाना और ये कहना कि आर्य नस्ल सबसे श्रेष्ठ हैं शामिल हैं. ये बातें हिटलर ने शुरू नहीं की ये पहले से चल रही थी. याद कीजिये कि ईसाइयत में यहूदियों के प्रति घृणा का वातावरण पहले से चलते रहा है. उन्हें ईसा मसीह का हत्यारा माना जाता था. ये ईसाइयत में एक गहरा पहलू है. ईसा मसीह खुद एक यहूदी थे. बाइबिल में ये लिखा हुआ है यहूदियों ने ईसा मसीह को प्राणदंड की मांग की थी. जब प्राचीन रोमन के गवर्नर ने कहा कि मैं इस आदमी को निर्दोष पा रहा हूं. तुम लोग कर लो जो कुछ करना है. यहूदियों ने कहा कि इसका खून हमारे सर पर और आने वाली पीढ़ियों के सिर पर होना चाहिये. बाइबिल में लिखा हुआ है कि यहूदियों ने कबूल किया है कि हम ईसा मसीह की मौत चाहते हैं और उसका दोष हमारे सिर पर रहेगा.

सवालयानी घृणा का माहौल पहले से ही था?
जवाब माहौल था और घृणा के पनपने के लिये परिस्थितियां मौजूद थी. हिटलर पावर में आया तो उसे  कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट्स दोनों समुदायों को बुलाकर कहा कि मैं यहूदियों के साथ ऐसा कुछ नहीं करने जा रहा हूं जिसकी मांग आपने पहले से नहीं की है. तो ये एक वातावरण था. इस वातावरण में राजतंत्र ढह गया, गणतंत्र बना  जिसके संविधान की रचना में समाज विज्ञानी मैक्स वेबर का भी हाथ था. अगर गणतंत्र बना होता और राजतंत्र ढहा होता तो हिटलर जैसे आदमी की इतना ऊपर चढ़ने गुंजाइश नहीं थी. गणतंत्र काफी अस्थाई था. उसका ढांचा तो था लेकिन उसके वफादार लोग नहीं थे. डेमोक्रेसी विथआउट डेमोक्रेट्स जैसी बात थी. कम्युनिस्ट पार्टी बनी थी और उसका उत्थान रूसी क्रांति के प्रभाव में भी हुआ. बोल्सेविक ने सत्ता छीन ली थी और वो लोग कह रहे थे कि पूरे यूरोप में हमारी क्रांति आनी चाहिये और आयेगी. ये लोग भी कह रहे थे कि ये खोखला गणतंत्र है और इसके पलट सर्वाहारा अधिनायक होना चाहिये. वो लोग रूसी क्रांति का नमूना चाहते थे.

सवालआर्मी का क्या रोल था
जवाब – जैसा मैंने कहा कि आर्मी युद्ध हार चुकी थी और हारना वाले हमेशा अनिच्छुक हैं अपनी जिम्मेदारी मानने के लिये. उन्होंने कहा कि हमारी पीठ में छुरा भौंका गया है इसलिये हम हारे हैं. यहूदियों के ऊपर रिपब्लिकन के ऊपर,  कम्युनिस्ट के ऊपर. राष्ट्रवाद के नारे को अतिवाद में बदल दिया गया और उसका हिस्सा था यहूदी विरोध साम्यवाद विरोध, समाजवाद विरोध गणतंत्र. एक मिश्रित प्रकार की विचारधारा गढ़ी गई। इस मिश्रण में एक तरफ को अतिराष्ट्रवाद और दूसरी ओर समाजवाद था. समाजवाद के बल पर ये कहा जा सकता था कि ये जर्मन वर्कर्स की पार्टी है. यह पार्टी बनी है 1920 में और इसके संस्थापक हिटलर नहीं थे. एक एंटोन ड्रैक्सलर थे जिन्होंने इस पार्टी की स्थापना की और बाद में वहां हिटलर जाकर मिल गया. उन दिनों में जबकि संविधान पूरी तरह से पारित नहीं हुआ था उस वक्त सेना के भीतर इस तरह के तत्व थे जो चाहते थे कि लोकतन्त्र को किसी तरह से रोक दिया जाये. वह संविधान नहीं देखना चाहते थे क्योंकि वह रूढ़िवादी लोग थे. राजतन्त्र पसंद करने वाले लोग थे. वह कहते थे कि हमारी पीठ में छुरा भौंक दिया गया. हमें हरवाया (पहले विश्व युद्ध में ) गया हम हारे नहीं. ये देशद्रोही तत्वों ने हमें हराया. इन्हीं लोगों ने हिटलर को सेना के विघटन के बाद सेना के अंदर एक नौकरी दी.

यह भी पढ़ें हिटलर की तानाशाही और अत्याचारों का हथियार थागेस्टापो

सवालमेरी जानकारी में सेना उस वक्त लोकतन्त्र विरोधी प्रचार कर रही थीक्या यह सच है?
जवाब – बिल्कुल ... लोकतन्त्र के खिलाफ प्रचार करने के लिये सेना तो उस वक्त सेमिनार और स्टडी सर्किल चला रही थी. लोगों को बताने के लिये कि ये सब एक ढकोसला है. ये सब नहीं होना चाहिये. ये सब 1920 में हो रहा था. इस दौर में हिटलर के भाषण देने की कुशलता निखर कर सामने आने लगी. म्यूनिक के बीयर हॉल में इसने अपने भाषण देने का सिलसिला शुरू किया. यहां वह जमकर अतिराष्ट्रवादी, समाजवाद विरोधी, यहूदी विरोधी, लोकतन्त्र विरोधी भाषण दिया करता था. इससे धीरे धीरे उसका नाम बनने लगा और फिर वह इसी पार्टी में शामिल हो गया... बातचीत के अंश: 


Popular posts from this blog

Third degree torture used on Maruti workers: Rights body

Haruki Murakami: On seeing the 100% perfect girl one beautiful April morning

The Almond Trees by Albert Camus (1940)

Albert Camus's lecture 'The Human Crisis', New York, March 1946. 'No cause justifies the murder of innocents'

Etel Adnan - To Be In A Time Of War

After the Truth Shower

Rudyard Kipling: critical essay by George Orwell (1942)