अपूर्वानंद - हमें मानवीय बनाने का काम हमारे निजामों का भी है

कुछ निजाम ऐसे होते हैं जो हमारे भीतर के उजले पक्ष को उभारते हैं और कुछ ऐसे जो हमारे भीतर जो घटिया है उसके लिए ज़मीन मुहैया कराते हैं
प्रेमचंद ने हुकूमतों और निजामों के बारे में लिखते हुए कहा कि कुछ निजाम ऐसे होते हैं जो हमारे भीतर के उजले पक्ष को उभारते हैं और कुछ ऐसे जो हमारे भीतर जो क्षुद्र और घटिया है उसके लिए ज़मीन मुहैया कराते हैं. सरकारों और जनता के मनोविज्ञान के बीच का रिश्ता इतना सीधा भी नहीं होता. लेकिन क्या प्रेमचंद की बात में कोई दम नहीं है?

आत्म रक्षा की प्रवृत्ति सबसे बुनियादी है. वह किसी भी प्रजाति के बने रहने और बढ़ते रहने के लिए आवश्यक है. इसलिए जब हम हिंसक स्थितियों में लोगों की प्रतिक्रियाओं पर विचार करते हैं तो उन पर कोई नैतिक रुख अपनाते हुए दुविधा में पड़ जाते हैं. हिटलर या स्टालिन के शिविरों में रहने वाले रोजाना ही अपनों को मारे जाते हुए देखने को बाध्य थे. उनमें से कुछ बच गए.

उस वक्त उन्होंने अपने साथियों के साथ जान देना क्यों तय किया? उसी तरह भारत में सांप्रदायिक हिंसा के किस्सों में हमने अक्सर मां या भाई को यह बताते सुना है कि उनके सामने उनके परिजनों या पड़ोसियों की हत्या की गई या उनके साथ बलात्कार किया गया, वे लाचार देखते रहे. एक मां अपने बच्चे को मारे जाते हुए कैसे देख सकती है?

लेकिन अपने जीवन के बचाव के लिए लिया गया निर्णय और जीवन स्तर में बदलाव के लिए लिया गया निर्णय दो अलग बातें हैं. इसके अलावा मनुष्य में चेतना और नैतिकता का प्रवेश उसकी आत्म रक्षा को लेकर समझ का दायरा विस्तृत करने की प्रेरणा देता है. यह उसे बताता है कि मेरा बचा रहना सिर्फ मेरे अकेले का बचा रहना नहीं और दूसरे की परवाह किए बिना या दूसरे की कीमत पर बचा रहना तो निकृष्ट है.

नैतिकता का प्रवेश मुझमें और दूसरों में किस प्रकार का संबंध होना चाहिए, यह तय करने का कार्य करता है. मेरा जीवन उस समय श्रेष्ठ या उत्तम नहीं है जब मैं अपने बारे में निर्णय करने के लिए स्वतंत्र अनुभव करता हूं, बल्कि वह उत्तम या श्रेष्ठ तभी होगा जब मैं उसकी आज़ादी की गारंटी भी कर सकूं जिससे मेरा कोई हित जुड़ा हो. अगर कोई मेरे लिए उपयोगी है, तभी मैं उसकी फिक्र करता हूं, यह मानवीय संबंध का निम्नतम स्तर है.

प्रेमचंद सरकारों को मानवीयता को उभारने और अमानवीयता को दबाने का एक ऐसा पैमाना दे रहे हैं जो आर्थिक विकास, वृद्धि, आदि से अलग है

इराक, सीरिया और अन्य देशों से युद्ध और हिंसा के कारण घर छोड़ने को मजबूर लोगों के लिए जर्मनी का अपनी सीमा खोल देना एक उदाहरण है. इस सन्दर्भ में जर्मनी के खुलेपन और ब्रिटेन की संकीर्णता से हम मानवीयता के बारे में अपनी समझ विकसित कर सकते हैं.

पाकिस्तान में गवर्नर सलमान तासीर ईश निंदा की आरोपी आसिया बीबी से मिलने गए जिसके लिए उनपर कोई दबाव था. इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. सलमान तासीर की जिंदगी का मोल उनके मुकाबले कहीं ज्यादा है जो खामोश रहे.

वैसी परिस्थितियां जो हमें निरंतर दबाती हैं कि हम सिर्फ और सिर्फ अपने आप तक सिकुड़ जाएं या जिनमें हमारा आत्म का दायरा संकुचित होता जाए, अमानवीय कहलाती हैं. जो परिस्थितियां हमें खुद से बाहर जाकर करने-सोचने की प्रेरणा देती हैं मानवीय होती हैं.

व्यक्तियों में नैतिकता बहाल करना राज्य या सरकार का काम नहीं, यह एक समझ हो सकती है. लेकिन प्रेमचंद इसके ठीक उलट बात कर रहे हैं. वे सरकारों को मानवीयता को उभारने और अमानवीयता को दबाने का एक ऐसा पैमाना दे रहे हैं जो आर्थिक विकास, कूटनीतिक सफलता आदि से अलग है.

निगाह दौड़ाएं और देखने की कोशिश करें कि दुनिया में ऐसे देश और निजाम कौन से हैं जो प्रेमचंद की मांग को पूरा करते हैं और कौन से निजाम ऐसे हैं जो उनकी कसौटी पर खरे नहीं उतरते. हम खुद अपने देश को भी देखें.



Popular posts from this blog

Third degree torture used on Maruti workers: Rights body

Haruki Murakami: On seeing the 100% perfect girl one beautiful April morning

Albert Camus's lecture 'The Human Crisis', New York, March 1946. 'No cause justifies the murder of innocents'

The Almond Trees by Albert Camus (1940)

Etel Adnan - To Be In A Time Of War

After the Truth Shower

Rudyard Kipling: critical essay by George Orwell (1942)