स्मृति ईरानी को एक जे-एन-यू के छात्र की चिट्ठि: अनन्त प्रकाश नारायण
आपकी सरकार आर एस एस के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, जिसे कॉर्पोरेट समर्थन मिला हुआ है, के एजेंडे को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. और उसके लिए यह ज़रूरी है की समाज से सोचने और तर्क करने की क्षमता को खत्म कर दिया जाय. चूँकि विश्वविद्यालय तर्क और वैज्ञानिकता की जगह होते है, इसीलिए स्वाभाविक निशाने पर हम आए...
सेवा में,
श्रीमती स्मृति ईरानी जी
“राष्ट्रभक्त” मानव संसाधन विकास मंत्री,
भारत सरकार
संसद में दिए गए आपके भाषण को सुना. इससे पहले की मै अपनी बात रखूँ , यह स्पष्ट कर दूं की यह पत्र किसी “बच्चे” का किसी “ममतामयी” मंत्री के नाम नहीं है बल्कि यह पत्र एक खास विचारधारा की राजनीति करने वाले व्यक्ति का पत्र दूसरे राजनैतिक व्यक्ति को है. सबसे पहले मै यह स्पष्ट कर दूं कि मै किसी भी व्यक्ति की योग्यता का आकलन उसकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नहीं करता हूँ बल्कि साफ़ साफ़ कहूं तो मै “योग्यता”(मेरिट) के पूरे कांसेप्ट को खारिज करता हूँ.
मानव संसाधन मंत्रालय का पद भार लेने के साथ ही यह अपेक्षा की जाती है कि आप इस देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उनकी ऑटोनोमी का सम्मान करते हुए उसके लिए उत्तरदायी होंगी. रोहित वेमुला के मामले में आपने क्या किया यह सबके सामने है कि किस तरह से वहाँ के प्रशासन पर आपने दबाव डाला जिसका नतीजा रोहित के institutional मर्डर के रूप में हमारे सामने आया. लेकिन मै इन सारी चीजो पर अभी बात नही करना चाहता. आप बार बार अपनी औरत होने की पहचान (आइडेंटिटी) को assert करतीं हैं और इसको करना भी चाहिए क्यूंकि नारी जाति उन ढेर सारे हाशिये पर किए गए लोगों में एक है जिनको सदियों से शोषित किया गया है. मै आपसे यह पूछना चाहता हूँ कि एक दलित स्त्री जो कि हर तकलीफ उठाते हुए अकेले अपने दम पर जब अपने बेटे बेटियों को इस समाज में एक सम्मानपूर्ण जगह देने के लिए संघर्ष कर रही थी तब एक नारी होने के कारण आप की क्या जिम्मेदारी बनती थी ? क्या आपको उस महिला के जज्बे को सलाम करते हुए उसकी बहादुरी के आगे सर झुकाते हुए उसके साथ नहीं खड़ा होना चाहिए था?
हाँ, मै रोहित की माँ के बारे में बात कर रहा हूँ. जो महिला इस ब्रहामणवादी व पितृसत्तात्मक समाज से लड़ी जा रही थी, अपने बच्चों को अपने पहचान से जोड़ रही थी, उस महिला को आप व आपकी सरकार उसके पति की पहचान से क्यूँ जोड़ रहे थे? आपको भी अच्छा लगता होगा की आपकी अपनी एक स्वतंत्र पहचान है. लेकिन यह अधिकार आप उस महिला से क्यूँ छीन रहीं थीं? क्या आप भी पितृसत्तात्मक व ब्रहामणवादी समाज के पक्ष में खड़ी होती हैं? अपना पूरा नाम बताते हुए अपनी जाति के बारे में आपने सवाल पूछा और आपका भाषण खत्म होने के पहले ही लोगों ने आपकी जाति निकाल दी.
मै आपकी जाति के बारे में कोई दिलचस्पी नहीं रखता हूँ और मै यह बिलकुल नहीं मानता हूँ की अगर आप उच्च जाति के होते हैं तो आप जातिवादी ही होंगे लेकिन आपके विभाग/मंत्रालय के तरफ से जो चिट्ठियाँ लिखी गई उसमे रोहित और उसके साथियों को जातिवादी /caste-ist बताया. मैडम क्या आप caste-ism और caste assertion का अन्तर समझती हैं? मै समझता हूँ की आप ये अन्तर भली – भाँति समझती हैं क्यूंकि आर एस एस जो आपकी सरकार और मंत्रालय को चलाता है, वह वर्ण व्यवस्था के नाम पर जाति व्यस्वस्था को भारतीय समाज की आत्मा समझता है और आर-एस-एस के एजेंडे को लागू करवाने की राजनैतिक दृढ़ता हमने समय समय पर आप में देखी हैं.
मुझे उम्मीद है कि आपने मनुस्मृति पढी होगी और आपको जानकारी होगी कि आर एस एस मनुस्मृति के मूल्यों को लेकर कितनी राजनैतिक प्रतिबद्धता रखती हैं. आपको यह स्पष्ट होगा की वो मूल्य दलित और नारी समुदाय के प्रति हमारे अन्दर किस तरह की चेतना को स्थापित करने का प्रयास करते हैं. मै एक दलित होने के कारण इसको पढ़ कर काफी अपमानित एवं बैचैन महसूस करता हूँ लेकिन एक नारी होने के कारण आप के अन्दर यह बैचैनी क्यूँ उत्पन्न नहीं होतीं? आप अपना भाषण देते समय जितना भावुक होने की कोशिश करतीं हैं, लगभग सफल भी होतीं हैं, वो भावुकता क्या मनुस्मृति पढ़ने के समय भी होती है? अगर आपने मनुस्मृती को अब तक नहीं पढ़ा है तो उम्मीद करता हूँ कि उस किताब को पढ़ने के बाद एक नारी होने के कारण आप तुरंत भाजपा छोडेंगी और उससे पहले किसी दलित सांसद, जो की उदित राज़ भी हो सकते हैं, के साथ मिलकर संसद में हीं मनुस्मृति का दहन करेंगी.
आपने अपने भाषण में चीख चीख कर कहा की रोहित के मृत्यु के ऊपर राजनीति हो रही है. मैडम शायद आप इतनी नासमझ नहीं हैं कि आप यह नहीं जानती हैं कि रोहित की मृत्यु भगवा राजनीति का परिणाम थीं. रोहित दक्षिणपंथी राजनीति, जिसकी वाहक आप भी हैं, के खिलाफ था जिसकी कीमत उसे अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी. फिर भी रोहित की महानता देखिये कि उसने आपको माफ़ किया. आज आपकी सरकार व संगठन इस देश के हर विश्वविद्यालय को छात्रों की कब्रगाह बनाना चाहते हैं. पहले IIT मद्रास, FTII, फिर HCU, AU, और अब JNU. हमारे मामले में आपने संसद में जांच कमिटी का हवाला दिया, लेकिन क्या आपको यह याद नहीं है कि आपकी चिट्ठियाँ जो हैदराबाद जा रहीं थीं वह वहाँ की जांच कमिटी के ही निर्णय को बदने का दबाव डाल रही थीं? हमारे मामले में क्या हुआ? बिना हमारी बात सुने हीं हमें de-barred कर दिया जाता है. लेकिन क्या आपको नेचुरल जस्टिस का ये सिद्धान्त नहीं मालुम है कि एक व्यक्ति की बात सुने बिना आप निर्णय नहीं ले सकते है. क्या संसद में हमारा नाम पढ़ते समय आपको यह सावधानी नहीं रखनी चाहिए थी कि इन्क्वायरी कमिटी के निर्णय आने का इंतज़ार कर लिया जाए?
आपने महिषासुर शहादत दिवस की बात की. क्या आपको यह नहीं मालुम है कि इस देश में तमाम तरह की धार्मिक भावनाएं (जिसमें आपका विश्वास नहीं है )हैं. इस देश के संविधान ने सबको बराबर अधिकार व स्वतन्त्रता दे रखी है. क्या आप यह नहीं जानती हैं की इस देश के कुछ हिस्सों में दलित व आदिवासी महिषासुर के साथ अपनी धार्मिक भावनाएं जोड़ते हैं? मै एक कम्युनिस्ट हूँ और धर्म में विश्वास नहीं करता, लेकिन मै यह मानता हूँ कि किसी भी व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं को तय करने का उसका अपना अधिकार है और रही बात किसी भी महिला के चरित्र हनन की तो इस मुद्दे पर भी जे एन यू के वामपंथी पार्टियों के पर्चे हमारे संघी रजिस्ट्रार के पास हैं. कृपया उसे भी मंगा कर के पढ़ लें.
आपने इस देश के न्यायालयों की चर्चा करते हुए यह बताने की कोशिश की कि अगर हम न्यायलय के पास किसी न्यायिक उपचार के लिए जाते है तो हम उस संस्था पर सवाल नहीं उठा सकते. बहुत ही छोटी समझदारी है आपकी. आपके हिसाब से अगर सोचा जाए तो इसका मतलब यह है कि अगर कोई मजदूर किसी कारखाने में काम कर रहा है और वहाँ से वह वेतन ले रहा है तो उसके प्रति होने वाले शोषण वह अन्याय के खिलाफ वह नही बोलेगा. मै इस तर्क को एक सिरे से खारिज करता हूँ, मेरा मानना यह है की किसी भी संस्था को बेहतर बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि उसके दोषों/ कमी/ कमजोरियों पर निर्ममता से बहस किया जाए और उसे सुधार कर और बेहतर बनाया जाए.
इसके सिवा भी आपने और भी बहुत बातें की. इन सभी बातों को सुनने के बाद क्या आपको सच में नादान मान लिया जाए? या बात कुछ और ही हैं? हम सब यह जानते हैं कि आपकी मौजूदा सरकार को इस समय देश में सबसे ज्यादा चुनौती छात्रों, किसानो और बुद्धिजीवियों से मिल रही हैं. इसीलिए आर एस एस के निशाने पर यह वर्ग पूरी तरह से हैं. छात्रों ने आपकी सरकार बनने से पहले हीं आपके फासिस्ट रवैये के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. आपकी सरकार आर एस एस के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, जिसे कॉर्पोरेट समर्थन मिला हुआ है, के एजेंडे को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. और उसके लिए यह ज़रूरी है की समाज से सोचने और तर्क करने की क्षमता को खत्म कर दिया जाय. चूँकि विश्वविद्यालय तर्क और वैज्ञानिकता की जगह होते है, इसीलिए स्वाभाविक निशाने पर हम आए.
आप आर एस एस के ब्रहामणवादी हिंदुत्व राष्ट्रवाद एवं कॉर्पोरेट एजेंडे को लागू करने में इतना मशगूल हो चुकीं हैं कि आपने किसी भी विश्वविद्यालय को बने रहने के जो मूल्य होते हैं उनको बर्बाद करने की कसम खा ली हैं. आप अपनी राजनैतिक विचारधारा के प्रति जो कि बहुसंस्कृतिवाद में विश्वास नहीं रखती है, के साथ खड़ी हैं और हम बहुसंस्कृतिवाद के साथ खड़े हैं, हम आपसे किसी भी रहम की उम्मीद नहीं करते हैं और जितना तेज़ हो सके प्रहार कीजिये हम भी अपनी ताक़त बटोर कर के पूरे हौंसले से आपका सामना करेंगे. अंतिम बात कह करके अपनी बात खत्म करूँगा, एक बार कभी किसी ने आपके घर के बाहर प्रोटेस्ट किया था तो आप कैमरे के आगे आकर रोने की कोशिश कर रहीं थी और अपने बच्चों के डर का हवाला दे रहीं थीं, लेकिन मेरी माँ नहीं रो रही हैं, बस थोड़ी चिन्तित हैं लेकिन फिर भी बोले जा रही हैं कि मोदी से लड़ते रहना, डरना मत.
आपके द्वारा बनाया गया “देशद्रोही”
अनन्त प्रकाश नारायण
Ex. Vice President
JNUSU